Short moral stories in hindi
बच्चों के लिए हिंदी कहानी दयालु बनो
सनोबर के पिता को पशु पक्षी पालने का बहुत शौक था। उन्होंने अपने घर में ही बहुत से पशु पंछी पाल रखे थे। एक दिन सनोबर ने अपने सहपाठियों से कहा आओ साथियों आज मैं तुम्हें तोता, मैना, कोयल ,मोर, खरगोश आदि दिखाने के लिए अपने घर ले चलती हूं।
उसकी सभी सहेलियां चलने के लिए उत्सुकता से तैयार हो गई। और वह सभी आज बहुत ही खुश थे क्योंकि वह यह सारे पशु पंछी देखने जा रहे थे। सबसे पहले वे लोग मोर के पिंजरे के पास गए। वहां मोरों का एक जोड़ा था दोनों मोरो ने अपने पंख फैला रखे थे। उनके रंग बिरंगे पंख बहुत ही सुंदर लग रहे थे।
थोड़ी दूर पर तोता का पिंजरा था एक तोते के गले में लाल रंग की कंठी थी। घर के पीछे की ओर एक सरोवर था सरोवर में बहुत सी बत्तख ए तैर रहे थे। एक पिंजरे में बहुत से सफेद और भूरे रंग के खरगोश थे।
मोना को एक शरारत सूझी उसने एक पत्थर उठाकर एक खरगोश की ओर फेंका पत्थर खरगोश को लोग लगा ।और वह दर्द से तड़प उठा खरगोश ही ऐसी दशा देखकर सनोबर को बहुत दुख हुआ। उसने मोना को डांटा और दोबारा पत्थर न मारने के लिए कहा। मोना रोने लगी मोना को रोते देख कर सोहन ने उसे समझाएं देखो। मोना हमें इन भोले वाले पशु पक्षियों को नहीं सताना चाहिए।
हमें तो इनकी देखभाल करनी चाहिए उनकी रक्षा करनी चाहिए ये हमारे मित्र हैं। यह पशु पंछी अपनी मधुर आवाज और सुंदर रंगों से हमारा मनोरंजन करते हैं। इन्हें देखकर हमें खुशी होती है यह हमारे घरों तथा बाग बगीचों की शोभा बढ़ाते हैं।
मोना ने कहा,” भैया, मुझसे भूल हो गई आगे से ऐसा कभी नहीं करूंगी ।मुझे भी एक खरगोश और तोता ला दो मैं उन्हें बड़े प्यार से पालूंगी। सभी बच्चे बहुत ही प्रसन्न हुए और फिर वह अपने घर को चले गए।
Short moral stories in hindi
सत्यवादीता
अध्यापक कक्षा में आए तो उन्होंने पाया कि वहां मूंगफली के छिलके पड़े हुए थे। उन्होंने क्रोधित होकर पूछा -किसने की है या गंदगी किसी भी छात्र की बोलने की हिम्मत नहीं हुई ।सभी को पता था कि क्रोधित होने पर वह छड़ी से मारते हैं ।
कुछ पल की चुप्पी के बाद अध्यापक बोले ठीक है। कोई नहीं बोलता तो मैं सभी को छड़ी से पिटाई करूंगा ।उन्होंने सबसे आगे वाले छात्र से हथेली फैलाने का इशारा किया जैसे ही उसने मारने के लिए छड़ी उठाई। कक्षा के एक छात्र बोल पड़ा- गुरुजी दोषी में हूं मैंने ही मूंगफली के छिलके डाले हैं।
इसलिए सजा मुझे ही दीजिए पर तुम तो ऐसी गलती नहीं करते, आश्चर्यचकित होकर कक्षा के मेधावी छात्र से अध्यापक ने पूछा। जैसे ही मैं इनको फेंकने के लिए जा रहा था की घंटी बज गई। और आप आ गए।
छात्र ने अपनी गलती का कारण बताया, तो गुरूजी ने कहा जाओ अब इन छिलकों को बाहर फेंक आओ ।अध्यापक ने कहा कक्षा के सभी छात्रों ने मन ही मन अपने साथी को उसकी सच बोलने की आदत के लिए उसे धन्यवाद किया।
क्योंकि उस छात्र के सच बोलने की हिम्मत दिखाई और सभी छड़ी की मार खाने से बच गए थे।
गुरुजी ने कहा,” तुमने मार का भी भय छोड़कर सच बोला है। इसलिए अब तुम्हें किसी प्रकार का
दंड नहीं मिलेगा।”
बच्चों! यह बालक और कोई नहीं, बल्कि महान क्रांतिकारी श्री बाल गंगाधर तिलक थे।
(Short moral stories in Hindi)बगुला और केकड़ा
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बगुला और केकड़ा |
एक जंगल में एक बहुत बड़ा तालाब था। उसमें अनेक प्रकार के जीव-जन्तू, मछलियां, केकड़े ,बगुले इत्यादि रहते थे ।
बड़े तालाब के किनारे एक बगुला भी रहता था। वह बहुत बुढ़ा हो चुका था। इसलिए वह मछलियां नहीं पकड़ पाता था। एक दिन वह बगुला तालाब के किनारे बैठ कर रोने लगा।
उसे रोता देखकर एक केकड़ा वहां आया और बोला,” मामा क्या बात है आप रो क्यों रहे हैं?”
बगुले ने कहा,” मैंने बहुत अपराध किए हैं ।अनेक निर्दोष जल जीवों और अन्य जल जीवन को मारकर खाया है ।अब मैंने निश्चय किया है कि किसी जीव को नहीं मारूंगा,।”
केकड़े ने कहा,” कि यह तो बड़ी अच्छी बात है, मामा पर तुम रो क्यों रहे हो?” केकड़े ने पूछा।
बगुला बोला,” आज इस रास्ते से कुछ ऋषि मुनि गुजर रहे थे तो मैंने उन्हें यह कहते हुए सुना कि यहां अब कुछ वर्षों तक बारिश नहीं होगी। इस तलाब का सारा जल सूख जाएगा ।और सभी जीव मर जाएंगे।मैं इसीलिए रो रहा हूं ।
केकड़ा बगुले की बात सुनकर बहुत चिंतित हुआ। वह तुरंत सभी जनों के पास गया और उन्हें सारी बात बताई यह सुनकर सभी जीव जंतु उस बंगले के पास आकर उससे इस संकट से बचने का उपाय पूछने लगे।
बगुला बोला,” यहां से थोड़ी दूर इससे भी बड़ा एक तालाब है। यदि तुम वहां पर जाओ तो जीवन भर आराम से रह सकते हो। मैं तुम सबको अपनी पीठ पर लादकर वहां ले जा सकता हूं।”
सभी जलजीव ने उसकी बात पर विश्वास कर लिया। वह रोज आराम से दो चार को अपनी पीठ पर लादकर ले जाने लगा। वह उन्हें ले जाकर एक चट्टान पर पटक देता और मारकर खा लेता। इस प्रकार वह खूब मोटा ताजा हो गया था।
एक दिन वही केकड़ा बगुले से बोला,” मामा मुझे भी उस तालाब में पहुंचा दो “बगुले ने सोचा” चलो, आज केकड़े का मांस खाया जाए।” वह केकड़े को ले जाने के लिए तैयार हो गया।
बगुला जब केकड़े को लेकर चट्टान पर पहुंचा तो वहां उसने मछलियों जलजीवों के कंकालों को पड़ा देखा। जब उसे दूर-दूर तक का तालाब नहीं दिखाई दिया तो उसने बगले से पूछा,” मामा कहां है वह तालाब !”बगुला बड़े जोर से हंसा और बोला ,”तुम भी जल्दी ही वही जाने वाले हो, जहां ये मछलियां व जलजीव गए हैं।
केकड़ा तुरंत उसकी नियत को समझ गया । उसने अपने दांतो से बदले की गर्दन जोर से पकड़ ली। और बगुले की गर्दन काट दी ।बगुले के प्राण निकल गए। केकड़ा उस बगुले की कटी गर्दन लेकर किसी प्रकार धीरे-धीरे थका-हारा अपने तालाब पर आया। उसे देखकर सभी जल जंतु आश्चर्य से कहने लगे,” अरे ,तुम वापस क्यों आ गए, अभी तक बगुला मामा भी नहीं आया क्या कारण है।
केकड़े ने उन्हें बगुले की कटी गर्दन दिखाकर सारी बात बताई सभी जलजीवों ने केकड़े की हिम्मत और समझदारी की प्रशंसा की ।
शिक्षा
Short moral stories in hindi कहानी में एक दुष्ट बगुले उसका अंत करने वाले केकड़ी की कहानी दी गई है इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी किसी पर आंख मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए।
हिंदी कहानी बच्चों के लिए चतुराई
एक समय की बात है एक जंगल में शेर रहता था। एक बार वह किसी शिकारी द्वारा लगाए गए पिंजरे में फस गया ।उसने पिंजरे से निकलने का बहुत प्रयास किया ,परंतु पिंजरा बहुत मजबूत था।
बहुत चाहने पर भी वह उसमें से निकल ना सका। वह उधर से गुजरने वाले जानवरों से पिंजरा खोलने के लिए प्रार्थना करने लगा, परंतु शेर के भय के कारण कोई भी जानवर पिंजरा खोलने को तैयार नहीं होता था ।
एक दिन एक हिरन उधर से निकला।शेर ने उससे भी पिंजरा खोलने के लिए कहा। हिरन ने शेर की और देखा कई दिन से भोजन ना मिलने के कारण वह बीमार और कमजोर दिखाई दे रहा था। हिरण को शेर पर दया आ गई परंतु उसे यह भी डर था कि कहीं पिंजरा खोलने पर शेर उसे ही न खा ले । अतः हिरण शेर से बोला ,”अगर मैं पिंजरा खोल दूंगा तो तुम मुझे ही खा जाओगे ।” ” नहीं हिरन भाई शेर बोला ,”नहीं हिरण भाई मैं इतना दुष्ट नहीं हूं ,जो अपने प्राण बचाने वाले को ही खा जाऊंगा। मैं तुम्हें वचन देता हूं कि मैं ऐसा नहीं करूंगा।”
शेर द्वारा दिए गए वचन से हिरन ने पिंजरा खोल दिया।
पिंजरे से बाहर निकलने पर शेर हिरन से बोला ,”बहुत जोर से भूख लग रही है ।अगर मुझे कुछ खाने को ना मिला तो मेरे प्राण तुरंत निकल जाएंगे ।आस पास और कोई तो नजर आ नहीं रहा है। मैं तुम्हें खाकर अपनी भूख शांत करूंगा ।”
हिरन ने कहा तुम मेरे उपकार का बदला मेरे प्राण लेकर चुकाओगे ?तुम तो बड़े धोखेबाज हो।”
शेर बोला ,” मेरा समय नष्ट मत करो ।हिरन तो वैसे भी हमारा प्रिय भोजन है ।अब मरने को तैयार हो जाओ।”
उसी समय एक लोमड़ी उधर आ पहुंची उसने और दोनों से झगड़े का कारण पूछा ।हिरन ने उसे सारी बात बताई ।
लोमड़ी बोली ,”मैं यह नहीं समझी कि तुम पिंजरे के अंदर कैसे चली गए ?
शेर बोला ,”मैं अंदर था ,यह बाहर था।”
लोमड़ी दोहराते हुए कहा – यह अंदर था।मैं बाहर था।”
शेर बोला ,”अरे नहीं ,मैं अंदर था।”
लोमड़ी बोली,” मैं चलती हूं। मेरी समझ में तो कुछ नहीं आता कि कौन अंदर था और कौन बाहर था?”
यह सुनकर शेर बोला ,”अच्छा मैं समझाता हूं यह कहकर शेर पिंजरे के अंदर चला गया जैसे ही वह शेर पिंजरे के अंदर गयाछं बोली,” अब आया समझ में तुम पिंजरे में बंद थे ,हिरण पिंजरे के बाहर था, तुम अंदर थे अतःअब अंदर ही रहो। हिरण बाहर था अब वह बाहर ही रहेगा । यही तुम्हारे झगड़े का हल है।
वैसे भी तुम्हारे जैसे दुष्ट को किसी की सहायता कि जरूरत नहीं है। यह कह कर लोमड़ी वहां से चली गई इसी प्रकार से उसकी धोखेबाजी का फल मिल गया
शिक्षा
Short moral stories in hindiकहानी में एक लोमड़ी की चतुराई के बारे में बताया गया है। चतुराई से न केवल स्वयं की बल्कि दूसरों की मुसीबत को भी दूर किया जा सकता है।
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